भेड़ एवं बकरी से होने वाले पशुजन्य रोग और उनसे बचाव

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भेड़ एवं बकरी से होने वाले पशुजन्य रोग और उनसे बचाव

निशांत शर्मा, श्रिया रावत, हर्षित वर्मा, अरबिंद सिंह एवं राजपाल दिवाकर
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पशुओं की मानव जीवन मे उपयोगिता स्वर्विदित है। पशुओं से हमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से मानव जीवन के लिए आवश्यक दूध, मांस, अंडा, ऊन, खाल इत्यादि प्राप्त होते है। समस्त लाभ के साथ-साथ पशुओं का मानव के आसपास जीवन यापन के कारण वह विभिन्न रोगों के संक्रमण का कारक भी बन जाते है। ऐसे रोग जो सामान्यतः मानव और पशुओं के बीच संचारित होते है, उनको पशुजन्य अथवा जूनोटिक रोग कहा जाता है। विश्व मे व्यापत ४ मनुष्य रोगों मे से  रोगों का प्रसार पशुओं से होता है, यह पशुजन्य रोग, पशुओं से पशुपालको मे विभिन्न माध्यमो जैसे खादय प्रदार्थो, पशुओं के स्वास द्वारा, पशुओं के काटने से, पशुओं के मल-मूत्र के संपर्क मे आने से प्रसारित होते है ।
जलवायु परिवर्तन, आवागमन के माध्यमों के विकास, सघन पशुपालन तथा अन्य कारण से नये रोगों की उत्पत्ती को नकारा नहीं जा सकता।  नये उत्पन्न रोगों का प्रसार भी पशुओं के माध्यम से देखा गया है। कोविड-19 वैश्विक महामारी के रूप मे अपनी उपस्थिति दिखा चुका है। अतः नये रोगों का प्रसार भी पशुजन्य रोगों से बचाव के कारण रोका जा सकता है
भारत —कषि प्रधान देश है । खेती के साथ पशुपालन हमेशा से होता आया है । विश्व मे सबसे ज्यादा पशु भारत मे है । लगभग 10 मिलियन भारतीय जनसँख्या केवल पशुपालन पर निर्भर है, ग्रामीण भारत की कुल अर्थवयवस्था का 5 ‰ पशुपालन से आता है । छोटे एवं सीमांत किसानो की आजीविका का प्रमुख माध्यम छोटे पशु जैसे- भेड़ और बकरी है । जिस कारण भारत बकरी और भेड़ की संख्या मे विश्व मे क्रमश द्वितीय और तृतीय स्थान रखता है । कम लागत पर अच्छी आमदनी प्राप्त करने के कारण ही बकरी को गरीब किसान की गाय भी कहा जाता है ।  कहा जा सकता है भारत की बड़ी जनसँख्या भेड़ और बकरी के संपर्क मे रहती है और उनसे होने वाले पशुजन्य रोग के प्रति संवेदनशील है

भेड़ और बकरी से होने वाले पशुजन्य रोग निम्न्वत है
अ. जीवाणुओं से होने वाले रोग
क्षय रोग सामान्य भाषा मे इसको टी-बी कहा जाता है । यह रोग माइकोबेक्टेरियम नामक जीवाणु से होता है । पशुओं मे यह रोग संक्रमित दाने- चारे को खाने से अथवा स्वास लेने के माध्यम से हो सकता है । बकरी मे ये निमोनिया तथा स्तनों मे सूजन कर सकता है । पशुओं से मानवों मे यह रोग संक्रमित वातावरण मे स्वास लेने से, संक्रमित पशु का कच्चा दूध या मांस खाने से हो सकता है । मनुष्यों मे इस रोग के लक्षण मे प्रमुख है खांसी, वजन कम होना, भूख ना लगना, थकान इत्यादि ।
संक्रामक गर्भपात   यह ब्रुसेला नामक जिवाणु से होने वाला घातक रोग है । इस रोग मे संक्रमित पशु का गर्भकाल के अंत मे गर्भपात हो जाता है । बच्चा मारा हुआ पैदा होता है, जोड़ो मे सूजन, बुखार, दस्त व वजन कम होना इस रोग के कुछ अन्य लक्षण है । पशुओं को यह संक्रमण संक्रमित पानी, दाने तथा जेर को खाने से होता है । मनुष्यों मे यह संक्रमित पशु के दूध के सेवन से या संक्रमित जेर, बच्चे तथा बाड़े के संपर्क मे आने से हो सकता है । मनुष्यों मे इस रोग के प्रमुख लक्षण बुखार का बार बार आना और उतरना, भूख न लगना, जोड़ो मे दर्द इत्यादि है ।
गिल्टी रोग ( ऐन्थ्रेस ) –  भेड़ और बकरियों मे यह रोग खाने या स्वास लेने के माध्यम से हो सकता है । इस रोग का कारक बेसिलस अन्थ्रेसिस होता है । पशुओं मे प्रमुख लक्षण बुखार, जुगाली ना करना, उत्तेजना, अवसाद, आकस्मिक मृत्यु होना तथा प्राकतिक छिद्रों से खून का स्राव होना है । मनुष्यों मे ये रोग दूषित मांस को खाने या संक्रमित पशु के निस्तारण के समय हो सकता है । मानवों मे यह रोग त्वचा मे काले घाव, बुखार, उलटी दस्त होना, बुख ना लगना, गले मे दर्द व स्वास लेने मे परेशानी जैसे लक्षण दिखता है ।
विब्रिओसिस (कम्पिलोबेकटीरिओसिस) – पशुओं मे ये रोग संक्रमित पानी-दाने का सेवन से हो सकता है जबकि मनुष्यों मे यह संक्रमित पशु के स्राव, जेर, भ्रूण के संपर्क मे आने से तथा संक्रमित खाने से होता है । यह रोग कोम्पिलोबेक्टर जीवाणु से होता है । पशुओं मे ये गर्भ पात करता है, बच्चे कमजोर पैदा होते है, बुखार, दस्त आदि लक्षण दिखता है यद्पि मनुष्यों मे यह पेट में दर्द, दस्त, उलटी और मस्तिस्क की सुजन इत्यादि लक्षण दिखता है ।
लिसटीरिओसीस  – यह रोग बकरियों मे लिस्टिरिया मोनोसिटोजेनेस से होती है । यह रोग संक्रमित खाने दाने विशेष रूप से साइलेज को खाने से होता है । मनुष्यों मे ये रोग संक्रमित कच्चे दूध, अध-पके मांस के सेवन तथा पशु से सीधे संपर्क मे आने से हो सकता है । पशुओं मे इसके लक्षण भूख ना लगना, गोल गोल घूमना, दिमागी सूजन, गर्भपात, बुखार होते है जबकि मनुष्यों मे दस्त, उल्टी, पेट मे दर्द, गर्भपात, असामयिक प्रसव जैस लक्षण देखे गए है ।
. विषाणुओं से होने वाले रोग
रैबीज   सामान्यतः कहा जाता है की यह रोग संक्रमित कुकुर के काटने से होता है परन्तु अन्य पशु जो की रोग से संक्रमित है तो वह भी संक्रमण के संचरण का कारण बन सकते है । यह रोग लायसा विषाणु से होता है और तंत्रिका तंत्र के माध्यम से पशु के लार मे आता है । ऐसे पशु की लार के संपर्क मे आने से मनुष्य भी संक्रमित हो सकते है । पशुओं मे यह रोग उग्रता, आशंका आना, व्यवहार मे परिवर्तन, लार का स्राव बढना जैसे लक्षण दिखाता है । मनुष्यों मे इसके लक्षण बुखार, थकान, सिरदर्द, उल्टी, बुख ना लगना, अति सवेदनशीलता, अति लार, व्याकुलता आदि है ।
ओर्फ  – पेरापोक्स विषाणु से होने वाले रोग के भेड़ बकरी मे प्रमुख लक्षण मुंह, होठो, चेहरे, थनों, पैरों तथा अन्य जगह घाव होना होता है । पशुओं मे यह रोग संक्रमित पशु की लार और संक्रमित वातावरण के संपर्क मे आने से होता है मनुष्यों मे भी संक्रमित पशु से सीधे संपर्क मे आने या संक्रमित पशु की कपड़ों, वस्तुओं के संपर्क मे आने से हो सकता है । मनुष्यों मे इस रोग से हाथो और उंगलियो के मध्य घाव हो सकते है ।
भेड़बकरी से होने वाले पशुजन्य रोगों से बचावः
किसी अन्य रोग की भाति पशुओँ से होने वाले रोगों से भी उचित प्रबंधन, साफ-सफाई तथा अन्य बचाव के तरिकों से बचा जा सकता है । निम्न बातो का ध्यान रखकर बचाव संभव है :
नियमित पशु स्वास्थ्य निरिक्षणः पशुपालकों द्वारा नित्य पशुओ का निरिक्षण करना आवश्यक है । ताकि, किसी प्रकार की व्याधि देखने पर पशुओ का पूर्ण तथा शीघ्र उपचार कराया जा सके । इससे पशुपालक कई रोगों से ग्रसित होने से बच सकते है । साथ ही पशुओ का समय-समय पर टीकाकरण, वाहय व आन्तरिक परजीवी की दवा पिलाना आवश्यक है । रोगी पशुओ को भी अन्य पशुओ से अलग रखना चाहिए तथा खुद पशुपालक को भी उचित दूरी बना कर रखना चाहिए ।
पशुपालक स्वास्थ्य  – जैसा की देखा गया है कि पशुजन्य रोग पशुओं से मानवों मे आते है, साथ ही मानव से पशुओं मे भी संचारित हो सकते है । अतः स्वस्थ्य पशुपालक को ही पशुओं तथा पशुउत्पादों के संपर्क मे आना चाहिए । कुकुर पशुपालकों का कुछ बीमारियाँ जैसे रेबीज के लिए बीमारी से पूर्व टीकाकरण करना हितकारी होता है । पशुपालक के शरीर मे लगी चोट, खुले घावों या कोई त्वचा सम्बन्धी संक्रमण के समय पशु बाड़े मे जाना नहीं चाहिए । पशु बाड़े मे कार्य से पूर्व तथा कार्य के बाद पशुपालक द्वारा साबुन या किसी हैण्डवाश से हाथ पैर धोने चाहिए ।
पशुओं से प्राप्त उत्पादों से बचाव  – संक्रमित पशु के साथ साथ उनके पशु उत्पाद भी संक्रमण का कारक हो सकते है । अतः संक्रमित अथवा इलाज के दौरान संक्रमित पशु के पशु उत्पादों जैसे दुग्ध, मांस इत्यादि का उपयोग नहीं करना चाहिए । सामान्यतः भी पशुउत्पादों को उपयुक्त तापमान पर पकाने के उपरांत ही ग्रहण करना चाहिए । दूध एक उपयोगी अवाम सबसे प्रचलित पशु उत्पाद है, दूध के दोहने के समय साफ सफाई का ध्यान रखना आवश्यक है । दूध निकलने से पूर्व थानों को अच्छे से साफ करना चाहिए । दूध दोहने वाला बर्तन भी अच्छे से साफ होना चाहिए ।
पशु प्रबंधन से बचाव रू पशुओं के उचित प्रबंधन एवं रखरखाव पशुओं को संक्रमण से बचा सकता है । पशुओं का एक बाड़े मे अधिक संख्या मे होना उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल सकता है । बाड़े मे हवा तथा प्रकाश के आवागमन के लिए उचित संख्या मे दरवाजे खिड़की तथा रोशनदान होने चाहिए । बाड़े में अन्दर आते समय निस्संक्रामक फुटमेट होनी चाहिए, जिसमे चप्पल, जूते या पैर रख कर ही बाड़े मे आया जाये । पशुओ को संतुलित आहार उनके पोषण एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए देना आवश्यक है । पशुओं के चारे एवं स्वच्छ जल का प्रबंद होना चाहिए । बाड़े मे साफ सफाई बनाये रखने के लिए नालियों तथा पर्याप्त पानी का प्रबंध होना चाहिए । वाह्य परजीवियों की रोकथाम के लिए यदाकदा बाड़े को कीटनाशक से धोया जाना चाहिए । बाहर से लाये गए पशुओं का टीकाकरण होना चाहिए तथा उनको पुराने पशुओं से मिलाने से पूर्व अलग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए ।
बचाव के अन्य तरीके  मृत पशुओं तथा प्रसव के समय हुए मृत बच्चों का निस्तारण सही और सुरक्षित तरीके से करना चाहिए । प्रसव के समय पशु, पशु स्राव, जेर इत्यादि को दस्तानों के माध्यम से ही छुना चाहिए । कुछ रोग जैसे रेबीज से ग्रसित पशुओं के मुह, नाक व् अन्य प्राक्रतिक छिद्रों के संपर्क मे नहीं आना चाहिए । कुछ स्थान जैसे बूचडखाने मे काम करने वाले व्यक्तियों को मृत पशुओं तथा उनके आन्तरिक अंगों के संपर्क मे आने वाले औजारों को अच्छे से साफ करना चाहिए ।

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http://hpagrisnet.gov.in/hpagris/Fisheries/Default.aspx?SiteID=3&PageID=990

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